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मेरी नई दोस्त आशा मुझे कुछ ज्यादा ही भावुक स्वभाव की लग रही हैं. उनकी एप्रोच वाकई प्रशंसनीय है क्योंकि उन्होंने अपनी समस्या का समाधान नहीं बल्कि दूसरे या कहें उनसे जुड़े लोगों की परेशानी, उनकी हताशा का जवाब मुझसे मांगा है. उनका सवाल थोड़ा जटिल जरूर है लेकिन एक दोस्त का फर्ज है अपने दोस्त को सही दिशा में राय देना तो कोशिश तो पूरी करूंगी कि उन्हें सही सलाह दे पाने में कामयाब रहूं.
आशा: आंखों और सपनों का गहरा नाता होता है पर जब यही आंखें दुनिया की सच्चाई को देखती हैं तो शायद सपने देखना भूल जाती हैं। दिल के किसी ना किसी कोने में हमारे सपने एक दर्द के साथ मौजूद रहते हैं कि कभी ना कभी जिंदगी के किसी मोड़ पर पूरे होंगे। आज भी मेरे दिल में पूरी उम्मीद है कि मेरे सपने पूरे होंगे पर मैं अपने उन दोस्तों की सहायता कैसे करूं जो दुनिया की भीड़ में अपने सपनो को पूरा करने का जुनून खो चुके हैं और उन्हें यही लगता है आम आदमी के सपने बस सपने होते हैं.
डियर आशा, आपका कहना और सोचना बिल्कुल जायज है कि जीवन में कभी-कभार ऐसे उतार-चढ़ाव आजाते हैं जब आपको लगने लगता है कि अब आपके जीवन में कुछ नहीं बचा, आपके सारे सपने टूट गए हैं और अब आगे का जीवन निराशा से भर गया है. नकारात्मक हालातों का सामना जीवन में कभी ना कभी हर किसी को करना ही पड़ता है लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि आप अपने सपनों का दामन छोड़ दें. जिन आंखों में सपने नहीं होते, जिस दिल में अरमान नहीं होते वह इंसान तो वैसे ही अधमरा हो जाता है. इसीलिए जिन्दा रहने के लिए सपने देखना बहुत जरूरी होता है. मेरा सपना पूरा होगा या नहीं, मैं इस कार्य को पूरा कर पाऊंगा या नहीं..वगैरह, वगैरह…
दोस्त, अगर यही सोचते रहोगे तो कभी कुछ हासिल नहीं कर पाओगे और खुद को ही दोषी ठहराते रहोगे. इसीलिए सपने देखिए और मौका मिलते ही उन्हें पूरा करने की कोशिश कीजिए. अगर मौका नहीं मिलता तो अपनी मेहनत से यह मौका तलाशिए और खुद अपनी एक पहचान बनाएं. निराश और हताश होकर कुछ हाथ नहीं लगता.
जिस तरह मैंने आपको समझाया है आप अपने उन दोस्तों को भी समझाने की कोशिश कीजिए जो अपने सपनों को गंवाकर एक जिन्दा लाश बनकर रह गए हैं. अरे भई जिंदगी एक बार मिलती है, उसी में हंसना है, रोना है, गाना है और हताश भी होना है…लेकिन फिर मुस्कुराना भी तो है.
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